Khadeshi Ahirani Poem राजा वर्पस खीर

Khadeshi Ahirani Poem राजा वर्पस खीर

खान्देशी अहिरानी कवीता

II राजा वर्पस खीर II

लोके मरोत तर्होत!
त्येस्नी कोन्ले फिकीर शे?
न्याव हाक्क मांघनारा!
भीक मांघ्या फकीर शे!!

सत्तापुढे श्यानपना!
कोन्हा टिकना सांगाना?
सत्ताधारी बोली तीच!
पत्थरनी लकीर शे!!

ज्याले निवाडी आनवो!
तोच बठस बोकांडे!!
सत्तासाठे पक्षांतर!
कर्न त्येले मंजूर शे!!

दारूबंदी व्हवाव नै!
फुकफाक चालूच शे!!
खरं बोली-वागी त्येन्हा!
पाठवर खंजीर शे!!

काका-डिक्राना वादम्हा!
घड्यायच फुटी गये!!
शिंदे-ठाकरे गटम्हा!
राजा बन्ना वजीर शे!!

साम दाम दंड भेद!
धर्म पंथ जाति भेद!!
लोकशाही भारतनी!
परस्थिती गंभीर शे!!

मारश्यात मरी जासू!
बोलश्यात पई जासू!!
बायकास्ले कायदाना!
भल्ता भारी धीर शे!!

नवातुर्ना पोर्हे निस्ता!
गल्लोगल्ले फिरतंस!!
गुंडा मवाली चोरेस्नी!
शानदार तक्दीर शे!!

हाजी हाजी करन्हारा!
मस्त मज्जा मारतंस!!
प्रजा खास बासी तुक्डा!
राजा वर्पस खीर शे!!

शिवाजी साळुंके, ‘किरन’.

च्याईसगाव, जि. जयगाव.