पेरणी Ahirani Kavita

Ahirani poetry

शीर्षक =पेरणी

धरणी माय पोटे उपाशी
दोन बिज अंकुर साठे
मने तिश्या बळी मन्हा
मायेनी उब लागो तेना ओठे…!!

चला करू पेरनी
मेघराजा हाक देई
वारा वादय संगे
पावसान्या सरी येई…!!

मृगनक्षत्रानी चाहूल लागता
काये भोर आभाय दाटी येस
धरनी मायना कुशी मजार
ममतान बीज साठी लेस…!!

जगना पोशिंदान
जगण त्यान शेतवर
टाईमवर होऊ दे पेरणी
जलधारा बरसू दे धरनीवर…!!

शेत मशागत कई मजबूत
सर्जा राजा मन्हा नटना
बयीले साथ भक्कम
जीव कासावीस पेरणीले वयना…!!

नको अंत देखू वरून राजा
बयीनी हाकले तु धाव
कबाड कसट करस मन्हा राजा
नही त्याले कसानी हाव…!!

बीजवाई ऊनी घरले
मोठ नटीसन तयार झायी
वाजता गाजत जोडी
वावरमा पेरनी ले जायी…!!

Psi विनोद बी.सोनवणे (धुळे)
            दिनांक =२२-०६-२०२४